*५२वर्ष पूर्व की गोपाष्टमी*
1966 में आज के दिन ही इंदिरा गांधी ने दिल्ली में हजारों साधु-संतों को बेरहमी से कत्ल करवाया था। 
  सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 250 भूखे-प्यासे साधु-संत दिल्ली की सड़कों पर गोलियों से भून दिए गए थे। 
  लेकिन गैर-सरकारी दावों के मुताबिक कम से कम 5000 संतों को कत्ल किया गया था।
  देशभर में गोहत्या पर पाबंदी के लिए 10 लाख से ज्यादा साधु-संत दिल्ली के बोट क्लब पर अनशन कर रहे थे। 
  गोहत्या पर पाबंदी का वादा करके उसी साल इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई थी।
  तब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा हुआ करता था।
 इंदिरा गांधी ने गोहत्या पर पाबंदी के अपने चुनावी वादे पर अमल करने से साफ मना कर दिया। 
  नाराज साधु-संतों ने 7 नवंबर के ही दिन बोट क्लब से संसद की तरफ कूच शुरू कर दिया।
  उनकी संख्या लाखों में थी। ज्यादातर लोग अनशन के कारण भूखे-प्यासे थे।
  संसद भवन के पास पुलिस ने शांति से जा रहे संतों को उकसाना शुरू कर दिया। 
  भड़क कर कुछ लोगों ने तब के कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज के बंगले को आग लगा दी। 
  इसके बाद पुलिस को मौका मिल गया। इंदिरा गांधी ने निहत्थे साधुओं पर गोली चलाने का आदेश दे दिया।
  वो गोपाष्टमी का दिन था, जब हजारों गोसेवक को घेरकर गोलियों से भून दिया गया।
  मरने वालों में ज्यादातर हरियाणा और पश्चिमी यूपी के यादव और गुर्जर गोसेवक थे।
  फायरिंग के बाद रात के अंधेरे में मरे और कुछ अधमरे लोगों को बेरहमी से ट्रकों में लादकर दिल्ली से बाहर रिज़ एरिया में ले जाया गया।
  बिना देखे कि उनमें कुछ जिंदा हो सकते हैं, पेट्रोल डालकर जला दिया गया।
  आंदोलन की अगुवाई करने वाले स्वामी करपात्री महाराज ने इसके कुछ दिन बाद हजारों संतों की मौजूदगी में श्राप दिया था कि जिस तरह से निहत्थे गोसेवकों को घेरकर मारा गया उसी तरह एक दिन इंदिरा गांधी के पूरे वंश का सर्वनाश हो जाएगा। 
   31 अक्टूबर 1984 को जिस दिन इंदिरा गांधी अपने घर में घेरकर मारी गईं, वो दिन भी संयोग से गोपाष्टमी का ही था। 
  तब के अखबारों ने इंदिरा गांधी के डर से इस खबर को छुआ तक नहीं। ज्यादातर ने बस उतना छापा जितना सरकार ने कहा।
  कुछ दक्षिण भारतीय और विदेशी अखबारों में थोड़ी-बहुत जानकारी छपी।
  वो आखिरी आंदोलन था जिसमें पूरे सनातन धर्म ने एकजुट होकर गोरक्षा की आवाज उठाई थी।
  इनमें बड़ी संख्या में रैदासी, कबीरपंथी, निरंकारी और नाथ संप्रदाय के लोग थे।
  हिंदुओं के अलावा बौद्ध, सिख और जैन धर्म गुरु भी इसमें शामिल हुए थे।
  इस नरसंहार के बाद इंदिरा गांधी ने पूरे देश में गोहत्या की खुली छूट दे दी।
  इतने बड़े नरसंहार को हिंदू समाज भूल गया और आज भी कुछ हिंदू कांग्रेस को समर्थन देते हैं।।

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